16 सौ शिक्षकों कर्मचारियों की मौत को सरकार द्वारा स्वाभाविक मृत्यु बताने पर भड़के शिक्षक संगठन
बेसिक शिक्षा विभाग व प्रदेश सरकार के रवैये पर शिक्षक नेताओं ने जताया कड़ा एतराज
अकेले सिर्फ जौनपुर में हुई 41 शिक्षक व दो अनुचरों की मौत
✍️इन्द्रजीत सिंह मौर्य/मोहम्मद अरशद
जौनपुर। कोरोना महामारी के संक्रमण काल में संपन्न पंचायत चुनाव में ड्यूटी के दौरान पूरे प्रदेश में 1600 से अधिक शिक्षक, कर्मचारी की मौत के मामले को प्रदेश सरकार द्वारा स्वाभाविक मृत्यु बताने से शिक्षक संघ में खासा आक्रोश फैल गया। जिले के शिक्षक नेताओं ने प्रदेश सरकार के उस बयान पर सख्त नाराजगी जताई है जिसमें सरकार ने प्रदेश भर में सिर्फ तीन शिक्षकों की कोरोना संक्रमण से मौत को स्वीकार किया है।
बेसिक शिक्षा विभाग और प्रदेश सरकार की इस दोषपूर्ण नीति के खिलाफ उत्तर प्रदेशीय प्राथमिक शिक्षक संघ के नेता अरविंद शुक्ला ने बुधवार को मुख्यमंत्री व जौनपुर के डीएम को भेजे गए शिकायती पत्र में आरोप लगाया कि
अकेले सिर्फ जौनपुर में 41 शिक्षक और दो परिचारकों ने अपनी जान कोरोना संक्रमण के चलते गंवा दी है।
हैरत की बात यह है कि इन शिक्षकों व परिचारकों को कोरोना से हुई मौत के संबंध में जिस क्षतिपूर्ति का ऐलान किया गया था, वह अभी तक दिया नहीं गया।
बल्कि इनकी मौत को जिम्मेदारों ने स्वाभाविक मौत करार देते हुए पल्ला झाड़ लिया, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। प्रदेश सरकार के इस असंवेदनशील रवैए पर कड़ा आक्रोश जताते हुए शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अरविंद कुमार शुक्ला ने कहा की पूरे प्रदेश में महज 3 शिक्षकों की कोरोना संक्रमण के चलते मौत स्वीकार किया जाना खुद ही सरकार की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है।
जबकि चुनाव प्रशिक्षण से लेकर मतगणना तक चुनावी ड्यूटी करने वाले इस जिले के ही 41 शिक्षक और दो परिचारक अपनी जान गवा बैठे हैं।
प्रदेश सरकार की इस दोषपूर्ण कार्यशैली पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए उन्होंने कहा कि सरकार व बेसिक शिक्षा विभाग का पैमाना चाहे जो हो लेकिन महामारी के चलते बड़ी तादाद में जान गवाने वाले इन शिक्षकों की मौत कोरोना संक्रमण से नहीं होने की बात बताने वाले अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के खिलाफ और शिक्षक संघ सीधे मोर्चा खोलेगा।
शिक्षक नेता अरविंद शुक्ला ने शासन से मांग की है कि प्रशिक्षण से मतगणना तक की समयावधि में मृत व संक्रमित होकर बाद में जान गंवाने वाले शिक्षकों व परिचारकों के स्वजनों को उचित मुआवजा व आश्रितों को तत्काल नौकरी देकर पीड़ित परिवार के घाव पर मरहम लगाया जाना चाहिए।
नहीं तो संगठन इस संवेदनशील मामले को लेकर उच्च न्यायालय की शरण लेने के लिए बाध्य होगा और संगठन हर स्तर पर मृत शिक्षकों के परिजनों को न्याय दिलाने के लिए सब कुछ करेगा ।
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