डीएम की सख्ती, एक के खिलाफ मुकदमा
विभाग के अधिकारी खुद भ्रष्टाचार को देते हैं बढ़ावा
कोडिंग के आधार पर फाइलों में होता है लेन देन का खेल
✍️इन्द्रजीत सिंह मौर्य/मोहम्मद अरशद
जौनपुर। जिलाधिकारी मनीष कुमार वर्मा द्वारा सोमवार को एआरटीओ दफ्तर में की गई छापेमारी के बाद विभागीय अधिकारियों ने भले ही एक व्यक्ति के खिलाफ मुकदमा दर्ज करा दिया है लेकिन इस भ्रष्टाचार की गंगोत्री में विभाग के अधिकारियों की भूमिका पूरी तरह संदिग्ध है। इस दफ्तर में दर्जन भर आउट साइडर कर्मचारी अवैध रूप से काम करते हैं। जो संबंधित पटल पर हर फाइलों की गोपनीयता भंग करने के अलावा विभाग के छोटे बड़े कार्यों में बखूबी दखल भी देते हैं । इन आउटसाइडर कर्मचारियों के बारे में विभाग के आला अफसर से लेकर संबंधित अधीनस्थ कर्मचारी को भी बखूबी पता है लेकिन इनके खिलाफ कभी भी कोई कार्यवाही नहीं होती ।
जब कभी जिलाधिकारी से लेकर मंडल स्तर के अधिकारियों द्वारा छापामारी की भनक लगती है तो यह आउटसाइडर कर्मचारी कार्यालय से लापता हो जाते हैं।
सोमवार को डीएम मनीष कुमार वर्मा द्वारा छापेमारी के दौरान सभी दलाल लापता हो गए लेकिन विभाग के आला अफसर से लेकर पटेल प्रभारियों के यहां अवैध रूप से काम करने वाले दर्जन भर युवक भी चुपचाप धीरे से निकल लिए।
दरअसल सभी युवकों को डर था कि अगर डीएम के संज्ञान में वह आए तो मुकदमा उनके खिलाफ जरूर दर्ज होगा , उधर डीएम ने जब कड़ा तेवर दिखाया तो विभाग के आला अफसर ने दिवाकर नाम के व्यक्ति के खिलाफ देर शाम को लाईन बाजार थाना में आईपीसी की धारा 406, 420 व अन्य के तहत मुकदमा दर्ज करा दिया है।
ऐसे में सवाल उठता है कि जब विभाग के आला अफसर ही भ्रष्टाचार को सह न दें तो फिर दलालों की कैसे हिम्मत पड़ेगी। वैसे सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी के इस कार्यालय में ड्राइविंग लाइसेंस से लेकर वाहनों के फिटनेस, रजिस्ट्रेशन व अन्य सभी कार्य कोडिंग के आधार पर खुलेआम किए जाते हैं । कोडिंग और फाइलों की संख्या के आधार पर ही लेनदेन का सारा खेल होता है।
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