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ईद-उल-अजहा 7 जून को मनाया जाएगा

ईद-उल-अजहा 7 जून को मनाया जाएगा

इस दिन क्यों दी जाती है कुर्बानी
✍️भानु प्रताप सिंह / मोहम्मद अरशद

खेतासराय(जौनपुर)। ईद उल-अजहा, जिसे आम बोलचाल में बकरीद कहा जाता है, इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जो हर साल ईद-उल-फितर के बाद मनाया जाता है। इस्लामिक पंचांग के अनुसार यह पर्व जुल हिज्जा माह की 10वीं तारीख को आता है, जो हिजरी कैलेंडर का आखिरी महीना होता है। यह महीना हज यात्रा के लिए भी प्रसिद्ध है, और इसीलिए बकरीद को हज के समापन पर विशेष रूप से मनाया जाता है। इस दिन मुसलमान हज़रत इब्राहीम की उस निष्ठा और बलिदान को याद करते हैं, जब उन्होंने अल्लाह के हुक्म पर अपने पुत्र की कुर्बानी देने का संकल्प लिया था।

यह त्योहार कुरबानी, सेवा और त्याग की भावना से जुड़ा होता है। ईद-उल-फितर के लगभग 70 दिन बाद आने वाला यह पर्व मुस्लिम समुदाय के लिए बहुत अहम होता है। बकरीद पर जानवर की कुर्बानी दी जाती है और उसका मांस तीन भागों में बांटा जाता है, एक हिस्सा गरीबों को, दूसरा रिश्तेदारों को और तीसरा खुद के लिए रखा जाता है। इस बार 2025 में ईद उल-अजहा 7 जून को मनाई जाएगी

कुर्बानी का महत्व

ईद उल-अजहा को ‘कुर्बानी का दिन’ भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन जानवर की कुर्बानी देना विशेष रूप से पुण्य और सम्मान की बात मानी जाती है। इस्लामिक शिक्षाओं के अनुसार, बकरा या अन्य हलाल जानवर की कुर्बानी करना वाजिब माना गया है, जिसका दर्जा फर्ज के बाद आता है। कुर्बानी के जरिए अल्लाह के प्रति अपनी भक्ति, समर्पण और आज्ञापालन की भावना प्रकट की जाती है।

क्यों मनाई जाती है बकरीद ?

इस त्योहार के पीछे एक ऐतिहासिक और धार्मिक कथा जुड़ी है। हज़रत इब्राहिम अलैहिस्सलाम को अल्लाह ने आदेश दिया कि वे अपनी सबसे प्यारी चीज कुर्बान करें। उन्होंने बिना हिचकिचाहट अपने बेटे हज़रत इस्माइल को कुर्बान करने का इरादा किया। उनकी सच्ची नीयत और भक्ति को देखकर अल्लाह ने यह बलिदान रोक दिया और इस्माइल की जगह एक बकरे की कुर्बानी करने का आदेश दिया। तभी से इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है और इस परंपरा का पालन दुनियाभर के मुसलमान आस्था और श्रद्धा के साथ करते हैं।

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